...

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वज़नी भार.....
सारे तथ्यों को...सारे तर्कों को...
हर अरमान के सामान को परे रख दो !!

सारे नातों को... सारे भ्रमों को...
बुनते-टूटते हर स्वप्न को परे रख दो !!

आँखों के कोरों पर इकट्ठी हो जाए जो नमी..
घूंट पी जाना उस छलछलाती नमी का !!

हर चुभन को ... हर मायूसी को...
सारी भटकती पीड़ाओं को फिर देना अपनी पनाह !!

कमज़ोर हो जायेंगे दर्द आके तुम्हारी पनाह में...
और ख़ुद की मजबूती होगी फिर बेमिसाल !!

ना फ़र्क फिर अवहेलनाओं का
ना फ़र्क फिर महत्ताओं का
ना बुनियाद ना बेबुनियाद
फिर शायद उठ पाए
बेहद वज़नी ये हल्का भार.......

- vineetapundhir