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*ज़िंदगी एक सुखद शाम*
ए ज़िंदगी तू काश शाम की तरह होती,
घर लौटने की खुशी,बच्चों का प्यार।
काम के सारे तनाव से मुक्त स्वच्छंद मन,
रास्तो पर चलते हुए योजना बनाता हुआ।
काश ज़िंदगी शाम की तरह होती,
रोटी कमाने को सुख से विरह न होती।
संजीव बल्लाल २४/४/२०२४© BALLAL S
घर लौटने की खुशी,बच्चों का प्यार।
काम के सारे तनाव से मुक्त स्वच्छंद मन,
रास्तो पर चलते हुए योजना बनाता हुआ।
काश ज़िंदगी शाम की तरह होती,
रोटी कमाने को सुख से विरह न होती।
संजीव बल्लाल २४/४/२०२४© BALLAL S
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