...

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क्या देखते हो

क्या देखते हो,दुनिया तुम्हारी।
क्या बेचते हो,चाय हमारी।
क्या सोचते हो कर लूं तैयारी।
क्या चाहते हो, देश बेचना प्यारी ।

क्या देखते हो, दुनिया तुम्हारी।
क्या बांटते हो,जाति कुमारी।
जब कोई कुछ बोले,
बोल ना सकेगे
मेरे कपट को रोक ना सकेगे।

क्या मांगते हो, दौलत तुम्हारी
क्या चाहते हो, मुद्रा बदले सारी
क्या जपते हो, अंबानी-अडानी
क्या सोचते हो,कर्ज लूंगा भारी।

क्या बेचते हो, एजेंसी सरकारी
क्या कहते हो, मुमकिन निकासी
जनता को कहूँ तो
कह न सकोगे
निंदों में सबको रहने ही दोगे।


क्या देखते हो , दुनिया तुम्हारी
क्या चाहते हो, संविधा हटा री
क्या सुझाते हो , हम कल्याणकारी
क्या दिखाते हो, विकास है जारी।

क्या देखते हो, दुनिया तुम्हारी
क्या मुंजते हो, करतुतें सारी
जब किसान कुछ मांगे
मांग ना सकोगे।
आत्मनिर्भर अब बन लो रे ।

© Jitendra_kumar_sarkar