...

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यादों की होली
रंगों की गलियों में यादें ही हमजोली
सूखा मन अब खेले यादों की होली

भीगा था तन मन जीवन सारा
उड़ता हर रंग था सपना हमारा
इश्क़ भरी पिचकारी उन पर मारी
भीग गई सजनी की सारी खुमारी

उसने भी पलट कर गुलाल लगाया
अपने हाथों से गालों को यूँ छुआया
सुर्ख़ मेरे दिल का मिजाज़ हो गया
चैन खोकर मन मेरा बेचैन हो गया

अब वो होली और वैसा रंग कहाँ
यादों की सोहबत है अपना जहां
उनकी याद में बस आंख भीगती है
उनके बिन सूखी हर होली बीतती है

गुलाल के बिना भी गुलाबी समां
बनता है सिर्फ उनकी यादों में यहां
बिन अश्क़ भी कभी कभी रोते हैं
यादों में जब उनकी हम खोते हैं

रंगों की गलियों में यादें ही हमजोली
सूखा मन अब खेले यादों की होली

© rbdilkibaat