...

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क्या कमी रह गई
मेरी खामोशी मेरी हिम्मत थी!
जो चुप चाप सब सह गई!
ना जाने मुझमे कहाँ कमी रह गई!

केवल जितना जानती थी!
उतना ही मानती थी
मै अपने दिल की करती थी!
माँ पा के सामने झूठ बोलने से भी डरती थी!
मेरे बारे मे ऐसी वैसी बहोत बाते होतीं थी
ये सब जानते हुए ये गलत है
ये गलत भी मैं चुप चाप सह गई!
ना जाने मुझमे कहाँ कमी रह गई