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रोज़ डे
रोज़ डे

शुरूर इश्क़ का जिस पर रोज रोज आता हैं
उसके लिए आज का दिन क्या रोज आता हैं
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इस गुलाब को इश्क़ से जोड़ कर ना तोड़ो
इवादत-ए-मोहब्बत का ये रिवाज़ ना तोड़ो
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गर गुलाब से होती मेहफूज़ ये मोहब्बत
तो ये इश्क़ के गुलाब ना इतने बिखरे होते
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किसी के हांथो में नहीं हैं एक फूल
तो कई फूल कई भबरों के साथ हैं
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वो गुलाब किताब में आज भी हैं
उसके ही सुर्ख मिज़ाज़ की तरह
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© DEEPAK BUNELA