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एक कदम सपनों की और
क्यों ना आज एक कदम सपनों की और बढ़ाया जाए, क्यों ना कुछ बनकर दिखाया जाए, जो हो गया सो हो गया क्यों ना उसे भुलाया जाए, अपने सपनों की तरफ क्यों ना एक कदम आगे बढ़ाया जाए, जो सपने किताबों पे पढ़ी धूल की तरह कहीं दब गए थे, क्यों ना सपनो पे पड़ी धूल को साफ किया जाए क्यों ना अपने सपनों की और एक कदम बढ़ाया जाए,
जो सपने कभी सोने नहीं देते थे, हर पल ज़िन्दगी को नई उमंग से जीने का रंग भरते थे, क्यों ना इन सपनों को पूरा किया जाए, क्यों ना एक कदम आगे बढ़ाया जाए,
माना की थोड़ी देर हो गयी हैं, पर इतनी भी नहीं की सपनों को पूरा ना कर पाए, चलो आज अपने सपनों की और कदम बढ़ाया जाए, क्यों ना उस सपनों की डायरी को बाहर निकाला जाए, जिसमे वो सारे सपने लिखें थे, क्यों ना उस डायरी पे लिखें अपने सपनों को...