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एक कदम सपनों की और
क्यों ना आज एक कदम सपनों की और बढ़ाया जाए, क्यों ना कुछ बनकर दिखाया जाए, जो हो गया सो हो गया क्यों ना उसे भुलाया जाए, अपने सपनों की तरफ क्यों ना एक कदम आगे बढ़ाया जाए, जो सपने किताबों पे पढ़ी धूल की तरह कहीं दब गए थे, क्यों ना सपनो पे पड़ी धूल को साफ किया जाए क्यों ना अपने सपनों की और एक कदम बढ़ाया जाए,
जो सपने कभी सोने नहीं देते थे, हर पल ज़िन्दगी को नई उमंग से जीने का रंग भरते थे, क्यों ना इन सपनों को पूरा किया जाए, क्यों ना एक कदम आगे बढ़ाया जाए,
माना की थोड़ी देर हो गयी हैं, पर इतनी भी नहीं की सपनों को पूरा ना कर पाए, चलो आज अपने सपनों की और कदम बढ़ाया जाए, क्यों ना उस सपनों की डायरी को बाहर निकाला जाए, जिसमे वो सारे सपने लिखें थे, क्यों ना उस डायरी पे लिखें अपने सपनों को महसूस किया जाए,क्यों ना अपने सपनों को पूरा किया जाए,
कितने सपने, कितने अरमान अपनों की वजह से और समाज की वजह वही उसी डायरी में बंद हो कर रह गए, क्यों ना अब अपने बारे में सोचा जाए, एक कदम अपने सपनों की और बढ़ाया जाए,जब आइने में खुद को देखु तो आँखों में वो चमक हो जो सपनों के बारे में सोच कर आती थी, क्यों ना खुद को सवारा क्यों ना अपने सपनों के लिए जिया जाए, क्यों ना एक कदम सपनों की और बढ़ाया जाए,
औरों के लिए तो बहुत जी लिए अब थोड़ा सा क्यों ना खुद के लिए जिया जाए, क्यों ना अपने सपनों को पूरा किया जाए,एक ही तो ज़िन्दगी मिली हैं क्यों उसे औरों की वजह से खोना हैं, क्यों सिर्फ मरने के इंतज़ार में जीना हैं, क्यों इतना डर कर जीना है क्यों नहीं इस ज़िन्दगी को ज़िन्दगी की तरह जीना हैं, क्यों ना जो छुट गया जो समय बीत गया उस पर रोने की बजाय जो समय हमारे पास हैं, क्यों ना उस समय को खुद की ख़ुशी के लिए जिया जाए क्यों ना अपने सपनों की और एक कदम बढ़ाया जाए, हर सपने को पूरा किया जाए, क्यों ना ज़िन्दगी के हर लम्हे को खुल के जिया जाए, ज़िन्दगी की हर ख़ुशी को गले से लगाया जाए, क्यों ना अपने सपनों की और आगे बढ़ा जाए.

© नेहा शर्मा