...

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"फिर से जख्म को हरा कर दिया"
एक रोज़ वो मिला मुझको, फिर जाने क्या हुआ मुझको|
मैंने पूछा उससे तू ख़ुश तो है ना, जो चाहा तूने वो सब तो हैं ना।
उसने हँसने का दिखावा किया, पर उसकी आँखो ने सब कुछ बयाँ किया।
आँसू छिपाते हुए उसने कहा, हाँ सब कुछ है मेरे पास यहाँ।

कमी किसी चीज़ की नही है, आँखो में ये सिर्फ़ पानी है कुछ और नही है।
उसका हर लब्ज मुझे समझ आता रहा, उसमें छुपा झूट साफ़ नज़र आता रहा।
फिर भी कुछ कह ना सका मेरी मजबूरी थी, पास होकर भी हम दोनों में बहुत दूरी थी।

अब मेरे बस में कुछ भी नही था, वो मेरे सामने तो था पर मेरा नही था।
उसके इन जवाबों में मेरे लिए भी सवाल था, शायद उसका भी मेरे जैसा ही हाल था।
क्यू शादी वादी की बुलाया नही, दोस्त कहते हो दोस्त को बताया नही।

चलो बुलाना ना सही मेरे बारे में बताया तो होगा, दोस्ती का फ़र्ज़ तो निभाया होगा।
कोई नया रिश्ता तो बनाया होगा, कोई नया सपना तो सजाया होगा।
अब इन बातों का जवाब मेरे पास कुछ नही, मेरी हसरतें मेरी क़िस्मत के आगे कुछ नही।

हाँ बंधन तो है तेरी यादों से पर जता ना सका, मैं अब भी वही हूँ उसको बता ना सका।l
वक़्त हो गया है तुम्हें देर होगी, चले जाओ फिर से तुम मुझे फिर देर होगी।
आँखो ने आँखो से अलविदा कह दिया, और दिल के ज़ख़्मों को फिर से हरा कर दिया।

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