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लड़कपन
चश्मे और चांदी भरे बालों से लैस, बच्चों को पढ़ाता वो गंभीर चेहरा जो कभी-कभी अपनी उम्र भूल कर बच्चों में बच्चा बन जाता है और उन्हें चुप कराते- कराते ख़ुद ही ठठा कर हँस पड़ता है।

वो आँखें जो दुकान में सबसे आगे रखी हुई संतरे की गोलियां देख कर मुस्करा देती हैं लेकिन आटे-दाल के भाव से झुंझती घर का ज़रूरी सामान लेकर आ जाती हैं।

हाथों में राशन की थैलियां लिये गुजरते वो ज़िम्मेदार हाथ
जो सोसायटी के पार्क में खेलते बच्चों के हाथ से कभी-कभी बैट या बैडमिंटन लेकर खेल के मैदान में आ डंटते हैं।

वो पैर जो जिन्हें एक उम्र के बाद लिंग के अनुसार
चाल-चलन सिखाये जाते हैं और उसी अनुसार बिना किसी आवश्यकता के गर्व या इठला कर चलने के नियम रटाये जाते हैं। और जो मौका मिलते ही अपनी उम्र और लिंग के दायरे तोड़ दौड़ पड़ते हैं।

और सबसे ज्यादा उस मन को, जो अब मेच्यौरिटी के नाम पर हर बार बिना बात इतनी बार मन मारता है मगर इतनी सफाई से की मन में छिपा एक बच्चा हर बार बचा रह जाता है।

हम सब के भीतर जी रहे उस बचपन को बाल दिवस की शुभकामनाएं!!

#बालदिवस #childrensday
© Neha Mishra "प्रियम"