मंजिल
तेरे हिस्से में सफर हो और मंजिल भी ये हो तो सकता है,
अपनी आंखों में रखकर चमक, कोई रो भी तो सकता है।
मुट्ठी भरकर चलो पिरों ही आते हैं उम्मीदों को आसमां में,
वीरान रास्तों में चलकर भी, तो कोई माहिर हो सकता है।
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अपनी आंखों में रखकर चमक, कोई रो भी तो सकता है।
मुट्ठी भरकर चलो पिरों ही आते हैं उम्मीदों को आसमां में,
वीरान रास्तों में चलकर भी, तो कोई माहिर हो सकता है।
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