...

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मंजिल
तेरे हिस्से में सफर हो और मंजिल भी ये हो तो सकता है,
अपनी आंखों में रखकर चमक, कोई रो भी तो सकता है।

मुट्ठी भरकर चलो पिरों ही आते हैं उम्मीदों को आसमां में,
वीरान रास्तों में चलकर भी, तो कोई माहिर हो सकता है।

कुछ यात्राएं कभी खत्म नहीं होती हमेशा जीवित रहती हैं,
अपनी उम्र खर्चकर, कोई भविष्य को खरीद तो सकता है।

समंदर मानो भर गया है, जैसे नदियों का जल पीते पीते,
कभी किनारे को भी तो किश्ती का इंतजार हो सकता है।

हर किसी को सुकून देती हैं यहां जीत की महफिलें 'राही',
पर जो हारके आज भटक रहा है कल जीत भी सकता है।

~~~~राही~~~~
© राही