...

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मैं साहसी बहुत हूँ
माना कि हूँ निकम्मा,मै आलसी बहुत हूँ।
बचपन से ही बता दूँ, मै़ साहसी बहुत हूँ।

बचपन में सुबह एक दिन मै खेत जा रहा था।
हाथों से पजामे को समेट जा रहा था।
एक था सफ़ेद साया,जाने कहाँ से निकला
था जिस तरफ अंधेरा,शायद वहाँ से निकला।
समझा कि भूत होगा,फिर भी नही घबराया।
काँपा नहीं मैं डर से,बस यूँ ही थरथराया,
बिल्कुल भी नहीं डर से, चेहरा पड़ा था पीला
जब मैं हुआ बरामद,था पेंट सिर्फ गीला।
था आदमी मैं समझा जिसको सफ़ेद साया,
वो ही सफ़ेद साया,मुझको उठा के लाया।

मैं भूत-प्रेत जिन्नों का पारखी बहुत हूँ।
बचपन से ही बता दूँ, मै़ साहसी बहुत हूँ।
माना कि हूँ निकम्मा,मै आलसी बहुत हूँ।
बचपन से ही बता दूँ, मै़ साहसी बहुत हूँ।

थोड़ा बड़ा हुआ तो पढ़ने शहर में आया।
होस्टल मे भी साहस का मैं छाप छोड़ आया।
करके डिनर...