...

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मायूसी
ये भीगी पलकें लाल रंग से भरी लाचार आंखे है तुम्हारी ,
चेहरे पर मुस्कान भला क्यूं रखते हो तुम।
कि ये दिल में इतना दर्द लगाए किससे अपनी राज छुपाते हो तुम,
लोग भी करते होंगे तुम्हारी इस खामोशी पर सवाल ।
फिर क्या कहते हो उन्हें जब वह पूछते है इसी दुनियां के हो न तुम,
ये अंधेरी रात में चांद को क्यूं निहारते हो इतना तुम ।
ये बादलों के पार क्या ढूंढते हो भला तुम या अकेलेपन में भला क्या बात करते हो।
लिखने के लिए बारिशों का ही इंतजार करते हो तुम।।
मोहब्बत तो इंसानों से करते हो तुम,
और तुम इजहार इन हवाओ घटाओ और बूंदों से कर देते हो तुम।
चोट लोगो से खाते हो और इल्जाम फिर वक्त को लगा देते हो तुम ,
आंखो में हजार सपने रखते हो और फिर दुनियां ही छोड़ देने की बात भला क्यू करते हो तुम।
भला क्यू करते हो तुम, भला क्यू करते हो तुम।