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ग़ज़ल
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किसी को अदा ए नज़र चाहिए है,
किसी की दवा ए जिगर चाहिए है ।

हमें तो फ़क़त इतना मालूम है कि,
वो मेरा नहीं है मगर चाहिए है ।

हज़ारों हँसी से है बेहतर कि चुप हो,
ज़माने को हँसना किधर चाहिए है।

शब ए ग़म की फुर्क़त चराग़ों का बुझना,
विसाल ए सनम की सहर चाहिए है ।

जनूँ की हदों तक पहुँच जाए उल्फ़त,
मुहब्बत में इतना असर चाहिए है ।

ये अहले सितम हैं सितम की है बस्ती,
जलाने को इसको शरर चाहिए है ।

सियाही क़लम की रगों का लहू है,
कलाम ए सुख़न को गुहर चाहिए है ।
© ishqallahabadi🖋