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ग़ज़ल
122 122 122 122

किसी को अदा ए नज़र चाहिए है,
किसी की दवा ए जिगर चाहिए है ।

हमें तो फ़क़त इतना मालूम है कि,
वो मेरा नहीं है मगर चाहिए है ।

हज़ारों हँसी से है बेहतर कि चुप हो,
ज़माने को हँसना किधर...