11 views
ग़ज़ल
122 122 122 122
किसी को अदा ए नज़र चाहिए है,
किसी की दवा ए जिगर चाहिए है ।
हमें तो फ़क़त इतना मालूम है कि,
वो मेरा नहीं है मगर चाहिए है ।
हज़ारों हँसी से है बेहतर कि चुप हो,
ज़माने को हँसना किधर चाहिए है।
शब ए ग़म की फुर्क़त चराग़ों का बुझना,
विसाल ए सनम की सहर चाहिए है ।
जनूँ की हदों तक पहुँच जाए उल्फ़त,
मुहब्बत में इतना असर चाहिए है ।
ये अहले सितम हैं सितम की है बस्ती,
जलाने को इसको शरर चाहिए है ।
सियाही क़लम की रगों का लहू है,
कलाम ए सुख़न को गुहर चाहिए है ।
© ishqallahabadi🖋
किसी को अदा ए नज़र चाहिए है,
किसी की दवा ए जिगर चाहिए है ।
हमें तो फ़क़त इतना मालूम है कि,
वो मेरा नहीं है मगर चाहिए है ।
हज़ारों हँसी से है बेहतर कि चुप हो,
ज़माने को हँसना किधर चाहिए है।
शब ए ग़म की फुर्क़त चराग़ों का बुझना,
विसाल ए सनम की सहर चाहिए है ।
जनूँ की हदों तक पहुँच जाए उल्फ़त,
मुहब्बत में इतना असर चाहिए है ।
ये अहले सितम हैं सितम की है बस्ती,
जलाने को इसको शरर चाहिए है ।
सियाही क़लम की रगों का लहू है,
कलाम ए सुख़न को गुहर चाहिए है ।
© ishqallahabadi🖋
Related Stories
16 Likes
5
Comments
16 Likes
5
Comments