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ज़िंदगी के अफ़साने
बोझ इतना है ज़िम्मेदारियों का लोगों,
मौत गले लगा रही है पल पल मुझे,

बिछाते रहे फूल जिनकी राहों में,
बोते रहें काँच वहीं हमारी राहों में,
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