परिंदा
मेरे सब्र का कुछ परिंदा उड़ा था
मुझे नींद अब आती नही
बहुत बार ऐसा भी होता होगा
मेरे हक़ की रात आती नही
में बुरी हो गई थी अब...
मुझे नींद अब आती नही
बहुत बार ऐसा भी होता होगा
मेरे हक़ की रात आती नही
में बुरी हो गई थी अब...