...

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परिंदा
मेरे सब्र का कुछ परिंदा उड़ा था
मुझे नींद अब आती नही
बहुत बार ऐसा भी होता होगा
मेरे हक़ की रात आती नही
में बुरी हो गई थी अब इतना कि
मेरा चांद अब पहलू में मेरे रोता नही
कभी कोई हसरत मिटे तो बताना
कोई ख्वाब तुम तक ना आए तो बताना
मैं अब तक पूरी खाक हुई तो नही

मेरे सब्र का कुछ परिंदा उड़ा था
मुझे नींद अब आती नही