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भोर के छींटे में लिपटी रात की मल्लिका
#भोरकेपर्दे

मेरे इस छोटे से जीवन काल में,
एक बड़ा सा जीवन है,
जो मुझसे जिया नहीं जाता,
मैं इस कगार पे खड़ी हूं कि,
मुझसे मरा भी नहीं जाता,
तलब रही थी कभी,
रात रानी को भरने की अपने आंगन में,
पर कलियां खिली ही कहां मेरे दामन में,
मर के भी मैं जिंदा रही मेरे अंदर,
और उठा लाई,
उस सुखी रानी को,
और फेंक दिया अपने कमरे के अंधेरे में,
जहां मेरा वास है,
और जहां जीने की एक झूठ मूठ सी आस है,
जिस...