...

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रोते रहते हैं पागल से
गम के उमड़ते हैं बादल से,
रोते रहते हैं पागल से,

ख्वाब जो पाले हमने दिल में,
पड़े हुए हैं सब घायल से,

सात सुरीले साज निकलते,
उसकी छनकती हुई पायल से,

आई हुई है याद तुम्हारी,
दोनों नैना हैं जल थल से,

जब सोचूं अपने बारे में ,
माथे पर पढ़ते हैं बल से,

इतने चुभते हैं तुमको तो ,
नजर नहीं आएंगे कल से,

ताकते रहते सूरत मेरी,
उसके दो नैना चंचल से,

दिल से गए हो जब से मेरे,
उग आए दिल में जंगल से,

सर्दी बहुत है और तनहा हैं,
कैसे भरकें एक कंबल से,

एक तो उसके होंठ गुलाबी
उस पर गाल भी है मखमल से,

हम भी फसेंगे इश्क में यारों,
कोई न निकला इस दल दल से,

सोचता हूं कि कैसे पापी ,
पाक हो गए गंगाजल से,

उसका मुखड़ा चांद का टुकड़ा,
उसके नैना नील कमल से,
© राम अवतार "राम"