...

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नेता और जनता
नेताओं को जनता को ठगने की अजीब सी है बीमारी,
अपना कीमती वोट देकर जनता पछताए बेचारी...

राजनीति लगती उतनी आसान नहीं
दिखती उतनी कठिन नहीं,
लोकतंत्र की हत्या अब शायद होती है वहीं...

समाज कंटक कुर्सी के हैं भूखे,
भले ही किसान के खेत पड़े रहें सूखे...

राजनीति के आगे किसी को कुछ दिखता नहीं,
चाहे तुम कुछ भी कर लो भ्रष्टाचार यहां रुकता नही...

जिन नेताओं को जनता ने चुना उन्हीं के,
कार्यालय पर टेबल के नीचे से ईमान बिकता
असहाय हुआ नागरिक न्याय के लिए बस रह जाता चीखता....

देश में कहीं आग या भूकंप क्यों नहीं आ जाए...
रेप, और स्त्रीभ्रुण हत्या भी इन्हे मामूली सी लगती है...
चैन से सोते ये मखमली गद्दों पर
जनता पेट भर रोटी भी न खाए...
तब भी राजनीति की चर्चा रुक न पाए...
धर्म जात पात पे लड़वाते,
एक दूसरे को आपस में ही मरवाते....

हजारों बड़े बड़े वादे कर जीत लेते हैं मन ये सबका,
जनता की मांग को अनदेखा कर वो बस पैसे के आगे झुका...

सत्ता और मलमत्ता
यही है उनकी राष्ट्रभक्ति,
कर्तव्य से पीछे हटते ये राजनेता...

नेताओं को है जनता को ठगने की अजीब सी बीमारी,
इन्होंने कर ली अपनी तिजोरी को भरने की तैयारी ...

लोकतंत्र की हत्या करते हैं नेता,
सब कुछ लुट जाने के बाद जाग जाती जनता...

©वंशिका चौबे
#Day4
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