...

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उम्मीदें फिर भी उफनती रहीं!
ज़िन्दगी रोती रही,
गम़ हंसता रहा,

अशर्फी चमकती रही,
इंसां बिकता रहा,

रूह जलती रही,
दिल सिकता रहा,

दुनिया ज़ालिम रही,
इल्ज़ाम लगता रहा,

मोहब्बत सिसकती रही,
इश्क पिसता रहा,

शमां जलती रही,
पतंगा मरता रहा,

दुनिया हंसती रही,
ज़ख़्म रिसता रहा,

उम्मीदें बारहा उफ़नती रहीं,
मैं भी लिखता रहा!

—Vijay Kumar
© Truly Chambyal