...

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हकीकत है यही यारों।।
मत ढूंढ अपनों में अपनापन कभी
जहां के लोग पूरे मतलबी हैं

गम और खुशी को लगाते रह गले तू
यही तो साथ हैं और कोई नहीं है

आजमा कर देख दुनिया को कभी
तेरे अपने कितने अजनबी हैं

औकात जैसी हो पूछ होती है वैसी
गर है अकेला देख तुझमें क्या कमी है

जिसके पास होती है बेशुमार दौलत
देख उनके पीछे दुनिया कैसे पड़ी है

इंसानियत मजहब है; कौन मानता है
कई मजहबों में बटे लोग बड़े मजहबी हैं

यूं तो बातें करते हैं बड़ी ऊंची ऊंची
हमाम में देखो तो नंगे खड़े सभी हैं

© शब्द सारथी

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