...

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अज्ञात
मुझे याद नहीं कब मैंने सपने संजोए थे,
कबसे कंधो पर भार ढोए थे,
नदी के जल सा करता था कलरव,
मुझे याद नहीं कब रहा अविरल ।
धरती की छाया देख,
धूप धाप में काया सेक
बगुलो सा चोंच मारता,
चला...