...

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ईश्क़ का रंग
बहती नदियों के किनारे पर फिर हमने खुद को पाया,
आसमां की चादर में, चाँद की और,
एकटकी देखते हुए खुद को पाया,
बहती नदियों को बहता देख,
खुद की जिंदगी के ठहरने का मतलब समझ आया।

खुद को किनारे पर अकेले खड़ा देख अकेले होने का मतलब समझ आया,
जिंदगी के हमसे बेपरवाही का मतलब समझ आया।

दिल के बवंडर को सुना घर मिला,
तस्वीरों, यादों सब उडा के ले गया,
दिल की बातें, जज्बात सब कहीं रेगिस्तान में छोड़ गया,
बस बिखरा अस्तित्व छोड़ गया।

जो ईश्क़ का रंग रगीन था,
अब उसका रंग सफेद हो गया।
© shivika chaudhary