...

2 views

मेरी वो पहचान है तू...
जज्बातों बिना अधूरी जैसे हर रचना,
उसकी पूर्तता करता तेरा साथ होना...

खून के रिश्ते से भी बढ़कर रिश्ता तेरा मेरा कहलाता,
मानो मेरी रचना का शीर्षक भी तुझसे ही जुड़ा रहता...

मेरी हर कविता के बोल है तू जिसके बिना मेरे होने का कोई अर्थ नहीं....
तेरा ये अटूट बंधन मुक्त हो जाए वो जीवन व्यर्थ कहीं....

तुझमें मुझे अपनों के कई रूप हैं दिखते,
मां जैसा खुद से ज्यादा खयाल तू रखती,
बड़ी बहन बन कर मेरी छोटी बड़ी गलतियां भी सुधारती,
जब प्यार से ताई कहूं तो दिल से मुझे गले भी है लगाती...

पिता जैसी मार्गदर्शक बनती
भाई जैसी रक्षक हो मेरे संग ढालसी खड़ी होती...

माना कभी लड़ती हूं,
अपनी बातो पर अड़े झगड़ती हूं
बेवजह गुस्सा भी करती हूं।

फिर तू...