...

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कतरा- कतरा, जर्रा-जर्रा
कतरा -कतरा , जर्रा -जर्रा
टूट रहा है, बिखर रहा है
सँभालूँ कैसे ख़्वाइशों की पंखुड़ियाँ
तिनका-तिनका फिसल रहा है

मन की दरारों से
अंधेरा रिसने लगा है
झीना सा उम्मीद का दामन
लम्हा-लम्हा सरक रहा है

दिल के वीराने
गहराते जा रहे हैं
तपते झुलसते सहरा में
बंजर-बंजर महल खड़ा है