कदर करते, हम भी तेरे प्यार की,
यार वजह कुछ और होती गर तेरे इन्कार की,
तो बेशक कदर करते, हम भी तेरे प्यार की,
तूने मगर बेरुखी से बे सबब बेजार कर डाला,
गफलत है क्या थी वजह नायाब से इकरार की,
उठा पर्दा गर शनासाई से तो हस्र क्या होगा,
दबी हैं अभी दिल में कई बातें हमारे राज की,
ये ज़हर-ए-क़ातिल हम पिएं भी तो भला कैसे,
इसमें दिखती है सूरत वही मेरे...
तो बेशक कदर करते, हम भी तेरे प्यार की,
तूने मगर बेरुखी से बे सबब बेजार कर डाला,
गफलत है क्या थी वजह नायाब से इकरार की,
उठा पर्दा गर शनासाई से तो हस्र क्या होगा,
दबी हैं अभी दिल में कई बातें हमारे राज की,
ये ज़हर-ए-क़ातिल हम पिएं भी तो भला कैसे,
इसमें दिखती है सूरत वही मेरे...