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मां , बहन , बहू , बेटी रूप है इसके अनेक
मां , बहन , बहू , बेटी
रूप है इसके अनेक

मेमोरी के फोल्डर सी होती है नारी
सबको सहेजे-समेटे हुए रहती है
दुख दर्द अपने ऊपर ले कर
खुशियां चारों ओर बिखेर देती है

गिले-शिकवे बहुत है दिल में उसके
पर दबा कर रखती है
शिकायतें लब पर ना आने देती है
मुस्कुराकर हर परिस्थिति से भिड़ जाती है

जब से इस जहां से रूबरू होती है
सुनती हैं वारे न्यारे हमेशा
हर और भेदभाव सहती है
फिर भी समाज रूपी जाली में सिमट जाती है
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