...

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पहले न थी.....
मेरे महबूब मुझमें तुझपे
इस कदर दीवानगी पहले न थी
शरारती थी मेरी आँखे पहले भी
इनमें शरारत की ये बयानगी पहले न थी
यू तो हर शाम क़ातिल थी
जलते चिराग मेरे कुरबत पर
जिस कदर आज ये कातिल है,
ये अंदाजगी पहले न थी।
शोख हुस्न पर तेरे
महफिल-ए-चाँद का लगना
मौला खैर ये मेरी हूर-ए-रूह
तेरी ये सादगी पहले न थी
शेखों की बस्ती में यूं तो इश्क अफसाने बहुत हुए
तेरे अफसाने के जैसी
ये बेजुबानगी पहले न थी।
मुकम्मल तो हुए फसाने कई
फरमान - ए - हुजूर सें
मेरे दिल तेरे फसाने में
ये बेबुनियादगी पहले न थी।


© Adroit_Mack