...

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हे नीम
#त्रिभ्यूट_इन_इंक
हे नीम
तुम मत दुखी हो
तुम काट दिए गए
पर मैंने तुम्हारी स्मृति का बीज
बो दिया है फिर से इस धरती में
मिट्टी में घुल मिलकर
वह एक दिन अंकुरित होगा
एक बड़े विशाल वृक्ष की संभावना लिए
जल प्रकाश और वायु के देवता
उसे धरती की गोद में मिलजुल कर पालेंगे पोसेगें
और हो धीरे-धीरे वो
धरती से आकाश की ओर बढ़ता जाएगा
एक बीज में छुपी असंख्य संभावना उभरेंगी
सैकड़ों हजारों शाखारूपी बाहें फैलाए
वह आकाश को अपने आगोश में लेना चाहेगा
हरे भरे पत्तों से भरी शाखाएं
प्राणवायु निरंतर विसर्जित करेंगी
और प्रदूषण को शोख लेगी
तब उन स्मृतियों की शीतल छाया
मेरे ऊपर ही नहीं सब के ऊपर होगी
केवल मुझको ही नहीं
सबको विश्रांति मिलेगी
सिर्फ एक
वृक्षारोपण से
गर असंख्य संख्या में होगा
वृक्षारोपण तो फिर धरती होगी हरी-भरी
प्रदूषित रहित होगा वातावरण।
© पूर्णिमा मंडल अनकहे एहसास