...

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रचना।
कतिपय शब्दों की बांकपन
कतिपय शब्दों से सिंचित मन
कतिपय शब्द उद्गार लिए
जीवन रस सर्जन करता है
कहने की आतुरता है
चाहे रुप कोई भी रचना की
सब मन की ही सुंदरता है
चाहे रुप कोई भी रचना की
सब मन की ही सुंदरता है
मोहित करता श्रृंगार रस
या विरहा की चौपाई में
वीर रस या गीता सी
भागवत सच्चाई में
रोपित किए, सिंचित किया
फ़सल सृजन , उपजता है
चाहे रुप कोई भी रचना की
सब मन की ही सुंदरता है
चाहे रुप कोई भी रचना की
सब मन की ही सुंदरता है
कई एक मोती से शब्द बने
फिर शब्दों की माला सी
दिल तक जाती जीवन रस की
मदमस्त करें मन हाला सी
कुछ छू जाती, कुछ रूलाती
कभी जीवन की सच्चाई है
चाहे रुप कोई भी रचना की
सब मन की ही सुंदरता है
चाहे रुप कोई भी रचना की
सब मन की ही सुंदरता है
बस उसकी ही परछाई है

© Gitanjali Kumari