...

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अडिग प्रतीक्षा की लगन...
#प्रतिक्षा

स्थिर तन चंचल मन,
अडिग प्रतिक्षा की लगन;
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग,
मीरा जैसे पाने को मधुसूदन रंग;
भटकते राम गलियां वन -वन की,
है बाँट निहारती सिया रघुवर की;
अश्रु धाराओं से हो जाती हैं नदियाँ निर्मित ,
वियोग में डूब जाते हैं राधा रमन भी।।
ना प्रश्नों का कोई हाल मिलता,
ना आने की कोई तिथि निश्चित ;
हर पल स्वप्न बुन रहा है ये मन।
ना जाने कैसी ये लगन...
ना जाने कैसी ये लगन...
रूठता है पल पल ये मन ,
दरस की लागी एसी लगन ;
अडिग प्रतीक्षा की लगन।।

© श्वेता श्रीवास