...

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क़साई और बकरी!
" भगवान ने उसे गूंगा न बनाया था
वह बोल सकती थी पगली मगर
बेवकूफ ही अक्सर बेवफाई किया करते है
इस राज़ ऐ तराजू से सायर शायद
वह खुद वाकिफ न थी
के पल वह कल वह यह आज का पल
वह कल ऐसा कुछ भी रहा नहीं फ़किरा
दया माया जहां वास करते हैं
आसान था जिन्देगी जीना
बड़ा बनना जहां कोई फ़किरा
बच्चों के बस की बात नहीं
के आज जैसे कलम कोई क़साई फ़किरा
कतरा कतरा हर चीख वह शब्द करेगा
कोई काल त्रीकाल महाकाल अब वह रूप है
काले अक्षर भैंस बराबर जो अब श्रृंगार शंहार
बकरी जो काली पीली खाली f#@kira
मैं मैं बोलते रटते रहते बंटवारा कराते थे
के हिफाजत जो हथियार फ़किरो सुनो
गैरों के हाथों जो खुद खुदा किया करते थे
ख़ुद ही आज वह जैसे फ़रिश्ते
दाता वहीं अंन्दाता f#@kira
खिंच खिंच घसीट परवरदिगार
पालनहार जिसे प्यार समझते थे
दुकान ऐ मजार कोई वे्वहार मोहब्बत
कुर्बानी दुवा पढ़ कर है जैसे एक कुवारी
दाम जीस जीस्म के भरपूर मीले है
जान जो बुरे वक्त में जवान हुए है
शादी ऐ सोहाग रात जोगन फ़किरा
कृत्यग्ता उपवास फल कोई फुल
बस बनने के खातिर
क्लीं जो माली मौला समझती है
हैरानी हैं ताज्जुब है तराजू भी फ़किरा
फैसले की इस कुछ बेहतरीन बेहरे घड़ी में
अलार्म जो आवाज किया नहीं करते हैं
अभागा आभाव बस क़ोई भाषा फकिरा
भरोसेमंद ही अक्सर जैसे
महादेव कहलाने वाले
बस युही f#@kira हाथों लकिर लिख कर
__________________हलाल करते हैं !"


© F#@KiRa BaBA