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क़साई और बकरी!
" भगवान ने उसे गूंगा न बनाया था
वह बोल सकती थी पगली मगर
बेवकूफ ही अक्सर बेवफाई किया करते है
इस राज़ ऐ तराजू से सायर शायद
वह खुद वाकिफ न थी
के पल वह कल वह यह आज का पल
वह कल ऐसा कुछ भी रहा नहीं फ़किरा
दया माया जहां वास करते हैं
आसान था जिन्देगी जीना
बड़ा बनना जहां कोई फ़किरा
बच्चों के बस की बात नहीं
के आज जैसे कलम कोई क़साई फ़किरा
कतरा कतरा हर चीख वह शब्द करेगा
कोई काल त्रीकाल महाकाल अब वह रूप है
काले अक्षर भैंस बराबर जो अब श्रृंगार शंहार
बकरी जो काली पीली खाली f#@kira ...