...

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कुछ ऐसी फितरत है हमारी ।
जमाने से अलग उसूल थे हमारे ।
जी हुजूरी की करने कीआदत नहीं हमें ॥
बड़े ही अदब से लुटाया हमने सब कुछ।
रहम की भीख पाने की आदत नही हमें ।
ज़मीर में शराफ़त की फितरत बनी रही । ज़मीर बेचकर जीने की आदत नही हमें .
जो बन्धन भरोसे के काबिल ना हो ।
ऐसे तालूख रखने की आदत नही हमें ॥ जमाने की ठोकरों ने सब सिखाया हमें ।
ख्वाब नये सजाने की आदत नही हमे ॥
अंधेरे की महफिले गंवारा हो गई हमें ।
बुझे दीप जलाने की आदत नही हमें ॥
मत सितम करना " शकुन " दिल पर ।
दर्द छुपाकर रोने की आदत नही हमें ॥
© shakuntala sharma