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कुछ ना कहो
लबों पर ख़ामोशी है मेरे,
सनम कुछ तुम भी ना कहना.
जो आंखे कह गई मेरी,
उसे आंखों से ही तुम पढ़ना.
जुदाई में बिताए है हमने,
ना जाने कितने दिन और रातें,
जो आना इस सावन में,
फिर जाने की बात ना करना.
लिखे हैं गीत कई मैंने,
विरह और जुदाई के,
मिलन के गीत अब निकले,
बस मन प्राण से मेरे.
तुम्हारी बाट जोहूं मैं,
तुम्हें दिन रात सोचूं मैं,
सपने में ही आंचल से,
तेरी पेशानी पोछूं मैं.
कभी आऊं सनम मैं भी,
तेरे ख्वाबों ख्यालों में,
जरा ठहरूं, जरा बैठूं,
कभी पास मैं तेरे.
कभी रौशन हो मेरी भी बिंदिया,
घर आंगन में तेरे.
मिलन की इस बेला में,
प्रेम की सौगात तुम देना,
ना मैं कहूंगी कुछ,
ना सनम तुम कुछ कहना.
✍️✍️©Ranjana Shrivastava
© Ranjana Shrivastava
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Writcoranj4371
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