...

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आशा से निराशा
आशा एक आस है,
इसमें किसी का छिपा विश्वास है।
इस आशा को कैसे बचाए,
जो टूट कर निराशा की ओर चलती जाए।

नए रंगो की बरसात है,
टूटते सपनों की रात है।
इस रात को तो ढल जाना है,
अगले दिन सब बिखरा हुआ पाना है।

फिर कोई आस आखिर कैसे लगाएगा,
जीवन उसे यही सीख दे जायेगा,
आस लगाने से पहले वो कप कपायेगा,
क्योंकि उसकी आशा का ख्वाब भी एक दिन टूट जायेगा।
© Mohit