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चलो
आओ फिर रात को हसीं कर लें,
गुफ़्तगू फिर कभी कभी कर लें।
तुम मुझे फ़ोन फिर से कर लेना,
बात डरकर दबी दबी कर लें।
फिर चलो थोड़ा सा झगड़ते हैं,
एक दूजे की अनसुनी कर लें।
तुम कहो डर के माँ है सुन लेगी,
हम तिरी बात पर यक़ीं कर ले।
चल कहीं दूर चल के बैठें कहीं,
ग़म को सारे की अब ख़ुशी कर लें।
दिल तुम्हारे बग़ैर लगता नहीं,
दिल की हर आरज़ू हसीं कर।
तुम जिधर जाओ अपनी छत पर तो,
हम पतंग अपनी फिर वहीं कर लें।
रात दीपक बुझाये कितने हैं,
तुम जो आओ तो रौशनी कर लें।
रात ख़ामोश है मकां वीरां,
तिरी हिजरत में ख़ुदकुशी कर लें?
© ishqallahabadi🖋
गुफ़्तगू फिर कभी कभी कर लें।
तुम मुझे फ़ोन फिर से कर लेना,
बात डरकर दबी दबी कर लें।
फिर चलो थोड़ा सा झगड़ते हैं,
एक दूजे की अनसुनी कर लें।
तुम कहो डर के माँ है सुन लेगी,
हम तिरी बात पर यक़ीं कर ले।
चल कहीं दूर चल के बैठें कहीं,
ग़म को सारे की अब ख़ुशी कर लें।
दिल तुम्हारे बग़ैर लगता नहीं,
दिल की हर आरज़ू हसीं कर।
तुम जिधर जाओ अपनी छत पर तो,
हम पतंग अपनी फिर वहीं कर लें।
रात दीपक बुझाये कितने हैं,
तुम जो आओ तो रौशनी कर लें।
रात ख़ामोश है मकां वीरां,
तिरी हिजरत में ख़ुदकुशी कर लें?
© ishqallahabadi🖋
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