...

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किस्सा
बारीशे भीगा रही है ......
या ये अश्को की गुस्ताखी हैं ....
बात ये दर्द की है ...
या झूठी वफा की है ....
बेवफाई भी तकदीर मे ना थी सही से ...
ये तो रुख मोड़ लेने का किस्सा था
मैं तेरी कभी हो न सकी बस तू ही मेरे दिल का हिस्सा था...
लफ्ज भी बयाँ कर नहीं पाते हर बात को अब ...
आँखों से समझ जाओं बस यही एक ख्वाहिश थी...
पर आँखे भी कहाँ मिला सके ये तो दिलो की आज़माइश थी....
© sbs