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लिखने वाले ने अच्छी खासी कीमत भी चुकानी होती है...
पहले इश्क़ में जी जान लगानी होती है...
फिर उसके नखरो की किश्त चुकानी होती है...
फिर झूठी बातों की सच्ची कहानी बतानी होती है...
फिर इश्क़ में रुस्वाई की ठोकर खानी होती है...
उसके बाद दर्द सुनने वालो की भीड़ जुटानि होती है...
उनमे से कुछ को शराब भी पिलानी होती है...
तेज़ हवा में आधी रात को सिगरेट जलानी होती है...
माँ को फ़िक्र में डाल कर गाडी तेज़ चलानी होती है...
फिर लुड़कते कदमो जब घर में वापिस आते हों...
दबे पाँव रसोई में घुस कर रोटी खानी होती है...
इश्क़ को मशहूर करे तो फिर अब कलम उठानी होती है...
हर्फ़ लिखी डायरी फिर न जाने क्यों अपनों से छुपानी होती है...
छप जाए ये किसी जगह तो नीलामी लगानी होती है...
इस से भी जब दिल न भरे तो अपनों को सुनानी होती है...
इतना काफी है या अभी और कुरेदें ज़ख्मो को...
लिखने वाले ने अच्छी खासी कीमत भी चुकानी होती है...
© सारांश
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