...

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कब तक रहोगे मौन?
"विवश हूं देख कर
इस असहनीय
खामोशी को।
यह खामोशी
जो करती है
मेरे अंतर्मन में
अनगिनत घाव,
और मैं तुम्हारी
इस घोर उपेक्षा को
सहन करते हुए
लगभग असहाय हो
जानना चाहता हूं
कुछ तुमसे,
पर तुम्हारे सीप सदृश
नेत्रों की विवशता देख
स्वयं भी हो जाता हूं
विवश, असहाय।
जानता हूं,
तुम्हें पता है,
यह खामोशी ही
मेरी विवशता है।
फिर भी करुणा से भरकर
व्यग्र मन से पूछना चाहता हूं
कुछ तुमसे।
मानता हूं,
अभी भी वहीं हो,
प्रेम की अकल्पनीय
साकार...