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ग़ज़ल
ये क्या ख़बर थी सारे भरम टूट जाएँगे
उस बेवफ़ा के हम पे सितम टूट जाएँगे
थम जाओ एक पल के लिए बादलों ज़रा
वरना तो छत से पहले ही हम टूट जाएँगे
इस हादिसे के राज़ से वाक़िफ़ न था कोई
रखते ही उनके दर पे क़दम टूट जाएँगे
इल्ज़ाम एक रात का जब उन पे आएगा
खा - खा के वो हमारी क़सम टूट जाएँगे
ये सोच कर बुला न सके बज़्म में कभी
“आलम” जो आ गया तो क़लम टूट जाएँगे
© All Rights Reserved
उस बेवफ़ा के हम पे सितम टूट जाएँगे
थम जाओ एक पल के लिए बादलों ज़रा
वरना तो छत से पहले ही हम टूट जाएँगे
इस हादिसे के राज़ से वाक़िफ़ न था कोई
रखते ही उनके दर पे क़दम टूट जाएँगे
इल्ज़ाम एक रात का जब उन पे आएगा
खा - खा के वो हमारी क़सम टूट जाएँगे
ये सोच कर बुला न सके बज़्म में कभी
“आलम” जो आ गया तो क़लम टूट जाएँगे
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