...

1 views

ग़ज़ल
ये क्या ख़बर थी सारे भरम टूट जाएँगे
उस बेवफ़ा के हम पे सितम टूट जाएँगे

थम जाओ एक पल के लिए बादलों ज़रा
वरना तो छत से पहले ही हम टूट जाएँगे

इस हादिसे के राज़ से वाक़िफ़ न था कोई
रखते ही उनके दर पे क़दम टूट जाएँगे

इल्ज़ाम एक रात का जब उन पे आएगा
खा - खा के वो हमारी क़सम टूट जाएँगे

ये सोच कर बुला न सके बज़्म में कभी
“आलम” जो आ गया तो क़लम टूट जाएँगे

© All Rights Reserved