...

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यह नदी नही...
यह नदी नही, उसकी कोई कछार है।
दूर वहां सुंदर यह मुड़ती
धन खेतों के बीच सिकुड़ती
दूर निकल फिर धारा बनती
मेरे जीवन को यह सनती
यह नदी नही, उसकी एक कछार है।
मछुआरों का गाँव उस पार है।
इधर दूर तक फैला खेत
मिट्टी आज है कल तक रेत
दक्षिण को यह बहती जाती
मिलती नदी को राग समेत।
यह नदी नही-
कोसी की एक कछार है।
मेरे बचपन का आकार है।



© Nishant Kumar