...

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जीए जा रह हूँ...
तुझे खोकर भी जीए जा रहा हूँ
तेरे यादों की सकूनत है पास मेरे
इसलिए ज़रा में भी जीए जा रहा हूँ
तेरी उल्फत में मुमूर्ष हूँ मैं
दुर्धर है तेरा मिलना फिर
फिर भी ये कोशिश किए जा रहा हूँ
तुझे खोकर भी जीए जा रहा हूँ
रैण ए रहमत होता है जब
यादों की बसेरों में तुम्हे पाता हूँ तब
सपने भी सच लग जाते है तब
फिजाओं में तुम्हे पाता हूँ जब
रैण सैलाब लाए इन यादों की फिर
इसलिए जीए जा रहा हूँ
तुझे खोकर क्षत-विक्षत है मन
पर तेरे यादों की सकूनत है पास मेरे
इसलिए जीए जा रहा हूँ
वो अर्णव भी स्तबध है तेरे जाने से
अब लहरे भी उमङती नहीं तेरे जाने से
पर हवाए गुजरती जब,तेरी महक के साथ
मै एक किश्ती- सा, रथी बन जाता रण-भेरी के साथ
तुम कुव्वत हो इस गाफिल मन की
लाजिमी है, इसलिए जीए जा रहा हूँ
निशि फिर छाई है तेरी यादों के साथ
तेरी यादों में चिर-नवीन बना रहूँ
ये अराल है कोशिश
फिर भी किए जा रहा हूँ
इसलिए जीए जा रहा हूँ
तेरे जाने का गम है
फिर जीए जा रह हूँ...

© ya waris