...

5 views

शायद
#zindadilsandeep
#kuchehsaasankahese
#शायद
शायद ज़माने के दस्तूर से रिश्ता तोड़ आया हूं।
शायद की ख़ुद को ही रास्तों पर तन्हा छोड़ आया हूं।।
शायद उम्र गुज़र रही है जाने किसकी तलाश में ?
शायद की ख़ामोशी के जहां में ख़ुद का नाम लिखवाया हूं।
शायद हिंदी मेरी बोलती है मेरी दिल की बातें कभी।
शायद की ख़ुद को ही अक्सर तबाह कर आया हूं।
शायद की कोई जुमला नहीं ज़िंदादिल में कभी।
शायद बेवफाओं से इश्क़ निभा आया हूं।।
शायद की कोई हमदर्द मिला नहीं ज़िन्दगी में कभी।
शायद अपने दर्द को ही अक्सर दवा बताया हूं।
शायद की मांग बैठे है ख़ुदा से जो मुमकिन ही नहीं।
शायद नामुमकिन ख्वाहिशों से रिश्ता जोड़ आया हूं।
शायद आग लगी रहेगी ये उम्र भर मुझमें कहीं।
शायद की ख़ुद को अंगारों के हाथों में सौंप आया हूं।।
शायद कुछ कहा नहीं हमनें किसी से कभी।
शायद ख़ुद को भी कुछ नहीं बोल पाया हूं।।
शायद हम सभी जानते है मेरा हश्र इस ज़माने में।
शायद सभी आशिकों के अल्फाजों को तमाम कर आया हूं।।
© ज़िंदादिल संदीप