...

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अधूरे ख़्वाब
मेरे भी कई ख़्वाब थे
जैसे,
वो चमचमाती लंबी सी कार से उतरना,
और उस स्कूल में पढ़ना, जहाँ सुना है
बड़े बड़े हीरो के बच्चे, पढ़ने को जाते है ।
उनके बस्ते का बोझ भी,उनके निजी कर्मी उठाते है ।
खाने में नूडल पास्ता खाते है तो
घूमने के लिए पेरिस और इटली जाते है ।

गेंद के नाम पर गोल्फ तो समय काटने के लिए
पियानो भी सीख जाते है ।
हर रोज,नए नए कपड़ो को पहन
पुराने हो गए कह कर, हाथ नही लगाते है ।

गुच्ची, अरमानी जैसे नामों से खुद को सजाते है ।
प्लेस्टेशन से खेलकर भी जल्दी बोर हो जाते है ।
माँ से ज्यादा, आया की गोदी में समय बिताते हैं ।
कुछ न भी हो तो,अपने स्टाफ़ को उंगलियों पर नचाते है ।
गुस्सा करते है, ट्रैफिक पर,मगर फिर भी
कूल डूड कहलाते है ।

मगर
सुबह की पहली किरण संग हम काम पर लग जाते है,
कभी बोतल, कभी थैली तो कभी लोहा ढूंढ लाते है ।
कंक्रीट के जंगल मे, नंगे पाँव ही, लकड़ियां बिन लाते है ,
तब कही जाकर , एक जून की रोटी खा पाते है।
देर रात तक गैरज की धूल में स्याह हो जाते है ,
कुछ खाए बिना कई बार , वही सो जाते है ।

सुनो,मेरे भी कई ख़्वाब थे जो, आज भी
हर रात बेरोक, मेरे ख़्वाबों में चले आते है ।।