...

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!! मिट्टी की ख़ुशबू !!
ख़ुशबू उस भोली मिट्टी की
आज भी तरोताज़ा है मेरे जेहन में।
खेला करता था बचपन में
कभी मैं उस मिट्टी में,
आज भी उस मिट्टी की धूल भरी
ख़ुशबू मेरी यादों में उतर आती है,
कहाँ गए वो लोग, वो समय,
वो ज़माना, वो कहानियाँ,
वो क़िस्से जो हमें हमारी दादी नानी
पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर सुनाती थीं?
आज भी वक़्त और उम्र के
इस पड़ाव पर याद आती है
ख़ुशबू उस भोली मिट्टी की ............

© राजेश पंचबुधे