कहकहों में भी आँसुओं के अंश होते हैं
तारीफ़ ना करना, तारीफ़ों में भी दंश होते हैं,
सूरत ना देख, मासुमियत में भी भ्रंश होते हैं।
ग़म को छुपाने में, कहकहों का सहारा ना ले,
इन कहकहों में भी, आँसुओं के अंश होते हैं।
कोई बयां करता, हम दर्द सीने में ...
सूरत ना देख, मासुमियत में भी भ्रंश होते हैं।
ग़म को छुपाने में, कहकहों का सहारा ना ले,
इन कहकहों में भी, आँसुओं के अंश होते हैं।
कोई बयां करता, हम दर्द सीने में ...