...

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एक बुढ़े पिता के जज्बातों की कहानी.....
घर में पूरे दिन सभी छप्पन भोग खा रहे हैं,
वो दिन भर में बस एक सूखी रोटी ही पा रहे हैं।
फिर भी उन्हें सब पेटू- पेटू कहकर बुला रहे हैं,

तब भी वो अपने झरते हुये बत्तीसियों के साथ मुस्कुरा रहे हैं।
अपने आंखों का आंसू बूढ़े हो चुके आंखों में ही सुखा रहे हैं ,
अपना दर्द लोगों की निगाहों से छिपा रहे हैं।

अपने घर की इज्जत अभी वो बचा रहे हैं ,
पिता होने का फर्ज अब तक वो निभा रहे हैं।

कर रहे हैं मन ही मन रब से फरियाद ,
अब खोल दो प्रभु मेरे लिए मौत का द्वार।

हर पल देखकर अपने ही संतान की कारिस्तानी ,
हर वक़्त होती है बहुत ही ज्यादा उन्हें हैरानी।

बड़ी...