...

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एक बुढ़े पिता के जज्बातों की कहानी.....
घर में पूरे दिन सभी छप्पन भोग खा रहे हैं,
वो दिन भर में बस एक सूखी रोटी ही पा रहे हैं।
फिर भी उन्हें सब पेटू- पेटू कहकर बुला रहे हैं,

तब भी वो अपने झरते हुये बत्तीसियों के साथ मुस्कुरा रहे हैं।
अपने आंखों का आंसू बूढ़े हो चुके आंखों में ही सुखा रहे हैं ,
अपना दर्द लोगों की निगाहों से छिपा रहे हैं।

अपने घर की इज्जत अभी वो बचा रहे हैं ,
पिता होने का फर्ज अब तक वो निभा रहे हैं।

कर रहे हैं मन ही मन रब से फरियाद ,
अब खोल दो प्रभु मेरे लिए मौत का द्वार।

हर पल देखकर अपने ही संतान की कारिस्तानी ,
हर वक़्त होती है बहुत ही ज्यादा उन्हें हैरानी।

बड़ी ही शर्मिंदगी से निकलते हैं उनके आंखों से पानी,
जल्दी ही खत्म हो जाये उनकी सफर - ए - जिंदगानी।

बीते उन दिनों को सोचकर ताजा हो जाती है कुछ याद पुरानी,
जब यूँ ही हंसी - मजाक में पूछते थे अपने बेटे से भविष्य की बातें अंजानी।

आ जायेगी जब बुढ़ापा मेरा तो तुम कैसे रखोगे ख्याल हमारा,
पूरे उत्साह से हंसकर जवाब मिलता था, पापा! आप तो जान - जिगर हो हमारा।

सुनकर प्यारी बातें उसकी मेरी आंखों में छा जाती थी खुशियाँ नूरानी,
लगता वक्त दिखा रहा अब हमें उसके झूठे प्यार की हकीकत वाली कहानी।

बस यही सब सोचकर बूढ़े आंखों से झर - झर गिरता है पानी ,
अंतर्मन की गहराइयाँ भी बन चली इक अनसुलझी सी कहानी।

नम हुई मेरी भी आंखे ख़तम हुई फिर एक कहानी ,
रो गई आरती बता बूढ़े पिता की बता कहानी।

करती हूं दुआ मेरे परवरदिगार अब न गुजरे किसी पर ये कठिन कहानी ,
देना सद्बुद्धि इतनी सभी को कि समझे रिश्तों की अहमियत नूरानी।


— Arti Kumari Athghara ( Moon) ✍✍


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