...

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मणिकर्णिका सी मोहब्बत मेरी🥀🫶
सबकुछ जल रहा है, जिन्दा है तो सिर्फ मणिकर्णिका,
राख़ लपेटे, भस्म लपेटे!

ये कुछ दरिया सी आँखें हैं,
मणिकर्णिका पर बैठे, क्रन्दन के भाव में,
बस एक टक सी निहारती भस्मो को, जो खुद को जलते देख रही,
एक तरफ मणिकर्णिका का बांध,
जो बांधे हुए है, आँखों की दरिया को,
डर, भय, क्रोध, क्रन्दन, जिजीविषा, सबकुछ जल रहा हो जैसे,

भय है तो सिर्फ एक,
कि ये दरिया सी आँखें मणिकर्णिका छोड़ते ही समंदर ना हो जाएं, और समंदर के हिलोरो को बांध पाना अत्यंत मुश्किल है,

जल रहा हो जैसे अंतर्मन,
जल रही हो जैसे खुद की परछाई,
जल रहा हो जैसे मणिकर्णिका का ये निर्भय जल,

राख़ हो जायेगा सबकुछ, ये शरीर, ये कनक जो मुँह में डाला गया था मोक्ष को,
ये मन, ये दम्भ, ये रिश्ते, नाते, सब, सबकुछ,

ये जो मुर्दा लाशें जलते हुए भी ऐंठ रही हैं खुद को,
जैसे मानो कह रही हो कि क्या होगा मेरे संपत्ति का,
क्या होगा मेरे लोगों का,
क्या होगा उन अनुयाईयों का,जो कतारबद्ध खड़े मुझे जलता देख रहे हैं,
और राजा डोम जलते दम्भ पर लाठियां बरसा रहा है,
जैसे कह रहा हो कि कुछ भी शाश्वत नहीं,
जल जाना ही परम् सत्य है,

अच्छा? अगर जलना परम सत्य है तो फिर जियें क्यूँ?

उत्तर है बनारस के मणिकर्णिका के पास !

वो जो पागल सी औरत दिख रही है,
हाँ अबला , जो जलते भस्म की धूनी लगाकर जल जाने को आतुर है,
वो जल रही है भीतर खुदके, राख़ हो रही है भीतर खुद के,

तो अच्छा! मनुष्य मृत्यु के पहले भी जलता है?

हाँ, अंतर यह है कि मृत्यु के बाद ज़ब मनुष्य जलता है तो उसका शरीर राख़ हो जाता है, और मृत्यु से पहले अंतर्मन की अग्नि में जलने वाला व्यक्ति प्रौढ,
जो समझ चूका होता है सबकुछ, क्या मरना क्या जीना,

सारी तरफ जलती लाशो के विपरीत, एक आशा के रूप में जलती हुई सूर्य की किरण प्रकाशित होती है,
सूर्य का तेज़ मानो दिन की ही नहीं अपितु जीवन की नई शुरुआत करने को प्रेरित करता है !

सबकुछ है मणिकर्णिका में....मोह के सिवा,

मणिकर्णिका जाते वक्त लगता है मन कितना भारी सा है, घृणा, द्वेष, जलन,और मैं का बोझ कुछ ज्यादा ही भारी हो जाता है,
और ज़ब वापस मणिकर्णिका से निकलने को उसकी सीढ़िया चढ़ते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे पूरा बोझ जलती चिता में राख़ हो गया हो,
मन शांत हो गया हो,
आँखें जैसे कम झपकती हो पहले से, मोह जिसने इस दुनिया को अपने धागे में बांध रखा है, टूटने सा लगता है,

हाँ, पर वो दरिया सी आँखें समंदर जरूर होती हैं !
और उन आसुओ का बोझ तो इतना हो जिन्हे कोई कन्धा संभाल ना सके,
सिवाय मणिकर्णिका के, सिवाय महादेव के, सिवाय बनारस के !

जल जायेगा, सबकुछ जल जायेगा, जिन्दा रहेगा तो सिर्फ मणिकर्णिका ! राख़ लपेटे, भस्म लपेटे !

© विषकन्या