...

10 views

औरत की ख्वाहिश बहुत बार मरती है
औरत की ख्वाहिश बहुत बार मरती है
उसकी सांसे न जाने कितनी बार घुटती है l

पर ये देखा नही कभी इस समाज ने
और जिसने देख उसने एहसास न किया
जिसने एहसास हुआ चुप्पी साध ली l

पर अब औरत ही जब मौन है
तो ख्वाहिश इसकी फिर कौन है l

शायद औरत अपने अन्दर के
स्त्रीत्व को देखकर
और कभी इस समाज और
अपने परिवार को सोचकर
ख़ामोशी में अपने अन्दर रहती है l
वो इसलिए अपने ख्वाबों पर
आपनी कितनी इच्छाओं पर
अनगिनत बार चलाती खंजर रहती है l


© fauji munday sohan lal munday