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बना रस
बनारस
तुम कुछ और नहीं मन हो
सबसे बड़े धन हो
असंभव कि तुम्हारी डगरी कोई बेमन हो

तुम श्लोक, स्त्रोत्र, काव्य हो
हर बात, हर विधा के भाग्य हो

अधिक या योनियां हों चौरासी
मोक्ष, आए कोई अगर काशी

जिससे संसार का मूल
नगरी नोंक उनके त्रिशूल
भोलेनाथ, आशुतोष, त्रिपुरारी
तेरी नगरी आने की मेरी भी आए बारी

जहां शोक भूल, तू आते ही हंस
नीरस को भी यहां, बना रस
जप ॐ शिव ध्यान पकड़ कस
जगत जंजाल ना रे, शिव में फंस
(विभूति )
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