...

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ग़ज़ल
देर तक देखी थी हमने बे - ख़याली पेड़ की
रफ़्ता रफ़्ता गिर पड़ी हर एक डाली पेड़ की

देखने को रोज़ पतझड़ इन्तेहाई देख ले
देख पायेंगे नहीं हम पाएमाली पेड़ की

सर्द रातें हैं क़यामत और चलती ये हवा
सो गए सारे परिंदे रात काली पेड़ की

पेड़ के नीचे शिकायत कर रहा वो शख्स
फिर ध्यान से सुनने लगा बातें निराली पेड़ की

देख कर बारिश पुरानी पेड़ ख़ुश था
इसलिए खींच ली तस्वीर हमने आज ख़ाली पेड़ की

फिर थकन को ओढ़ गहरी नींद में हम सो गए
रास्ते में देर तक तो छाँव टाली पेड़ की

सब्ज़ होने के लिए हम ख़ुश्क हैं पहले पहल
हाय ! ये तरक़ीब हमने आज़माली पेड़ की

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* पाएमाली- पांव के नीचे
* सब्ज़ हरा भरा
* खुश्क - सूखा , मुरझाया हुआ

एक ग़ज़ल पेश - ए - खिदमत
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© Saloni saradhana 😎